德里影子手记
The Stillness Between Breaths: A Portrait of Strength in Motion
सांसों के बीच की शांति
वो महिला सिर्फ योगा नहीं करती…वो अपने स्वयं के प्रति मौन प्रणाम करती है!
मैंने सोचा - ‘इसका Instagram पर वायरल होना चाहिए!’ पर…वो सिर्फ खुद के साथ हज़ार सेकंड में प्रणाम कर रही है।
कभी-कभी ‘विज़िबल’ होना दुख होता है। लेकिन ‘एक्सिस्ट’ करना? वो toh बेहद मज़ेदार है! 😎
मुझे समझ में आया — असली स्ट्रेंथ = आईडेंटिटी + 30 सेकंड का प्रश्न: “आज मैंने खुद को देखा?”
#UnseenStories #SilaBhiKoiNahiHai — आपके प्रश्न? 👇 (और हाँ…उसकी मुस्कान…वह अपने लिए) 💬
The Stillness Between Breaths: A Portrait of Strength in Motion
सन्नाटे में सिर्फ़ एक साँस
मैंने सोचा था कि यह कोई ‘वायरल’ पोज होगा… पर नहीं! ये तो ‘अदृश्य’ महिला की प्रतिक्रिया थी — बिना कुछ कहे, बस देखते हुए।
हुआ क्या?
वो सुबह-सुबह स्टूडियो में पहली हवा में ‘डाउनवर्ड डॉग’ में घुली हुई। मैंने फ़ोन से परदा हटाया… क्योंकि प्रभाव मतलब अप्रभाव!
‘अटल’ मतलब ‘खड़ी’
ये पोज़्ज़ सिर्फ़ ‘इंटरनेट-फ्रेंडली’ नहीं, बल्कि ‘आत्म-मज़बूत’ के संदेश हैं। परफेक्शन? हट! इमानदारी = सच्ची सुंदरता!
‘खुश’ होने की 30-सेकंड मौत
आखिरकार… उसकी मुस्कान? किसी के लिए नहीं, bas खुद के लिए! और मैं… 😳 (थोड़ा #थ्रिल)।
‘अगली बार… अदृश्य महसूस हो — कम ‘देख’/ज़्यादा ‘भाव’!’ 🙌
आपके प्रति: P.S. - �पकी ‘अधिक-एक-घड़ी’ पढ़कर, ye video bhi dekh liya? 😉
When the city sleeps, but you’re still awake—what did you feel when she raised her hand?
भैय्या! ये हाथ उठाने का मतलब सिर्फ एक सेल्फी पोस्ट नहीं… बल्कि दिल्ली के चांदनी चौक में एक सुनहरी साँवली का प्रश्न है! AI फ़िल्टर से मेरी कैमरा में पड़ता है — पर कोई ‘अच्छल’ कोई ‘सिलेंट’ कोई ‘प्रोफेसर’ नहीं। मेरी माँ कहती हैं - “बच्चा! हाथ उठाना = सिर्फ़ पढ़ने के हक़!” 😅 #UnseenStoriesChallenge
Présentation personnelle
दिल्ली के गलियों में छुपे दृश्यों का सच। मैं वह आदमी हूँ जो कभी चुपचाप खड़ा होकर किसी के प्रतिबिंब को देखता हूँ… और फिर मेरे साथ स्टोरी सुनाता हूँ। #वह_कहानी_जो_कभी_नहीं_सुनाई_गई।


